ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
फूल के बदले मिले खार, कोई बात नहीं
ज़ीस्त में ग़म की है भरमार कोई बात नहीं
मुझसे करता नहीं वो प्यार कोई बात नहीं
उसकी जानिब से है इनकार कोई बात नहीं
कोशिशें साथ मैं चलने की करूँगा भरसक
वक़्त की तेज है रफ़्तार, कोई बात नहीं
वैसे भी चिकना घड़ा आप हैं, जग जाहिर है
मन की कर लीजिए सरकार, कोई बात नहीं
मुस्कुराकर ही मिला करता हूंँ सबसे जग में
दिल पे रक्खा है मनों भार, कोई बात नहीं
आँच पर नफरतों की सेंक रहे हैं रोटी
ज़हन से लोग हैं बीमार, कोई बात नहीं
देना दस्तक नहीं छोड़ेंगे ज़माना दिल का
बंद रखना है रखे द्वार, कोई बात नहीं