ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
हो ज़माने में जिससे गुज़र ज़िन्दगी
सीख ले कोई ऐसा हुनर ज़िन्दगी
ये बताये कोई लाज़िमी है कहाँ
ज़िन्दगी से रहे बेख़बर ज़िन्दगी
ख़्वाब पूरा नहीं एक भी हो सके
दे न इतनी ख़ुदा मुख़्तसर ज़िन्दगी
कैसे मुस्कान होठों पे लाए बशर
दर्द देती है शामो-सहर ज़िन्दगी
जाने वाले बताते हुए ये भी जा
तेरे बिन कैसे होगी बसर ज़िन्दगी
है वही मेरे अहसास से बेख़बर
काटता हूँ जिसे देख कर ज़िन्दगी
हो गई हमसे क्या ऐसी हीरा ख़ता
जो दुखों की बनी हमसफ़र ज़िन्दगी