ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
अब गवारा नहीं उनसे यारी कोई
फ़िक़्र जिनको नहीं है हमारी कोई
अपनी मर्ज़ी का मालिक है दिल दोस्तो
इस पे चलती नहीं होशियारी कोई
इश्क़ की राह पर चल पड़े आप क्यों
जब उठानी न थी जिम्मेदारी कोई
दुश्मनी, दोस्ती जो भी हो ज़ीस्त में
हम न रखते हैं बाकी उधारी कोई
आप के ख़्वाब जिसमें न मेहमाँ बने
रात हमने न ऐसी गुज़ारी कोई
एक दूजे के सुख-दुख में शामिल रहें
बात हीरा नहीं इससे प्यारी कोई