ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
आशिकी का हुनर नहीं आता
ज़ीस्त करना बसर नहीं आता
मैं वो भूली कहानी हूँ जिसकी
कोई लेने ख़बर नहीं आता
झूठ के बेहिसाब मेले में
सच किसी को नज़र नहीं आता
सूनी लगती है तारों की महफ़िल
नभ पे जब तक क़मर नहीं आता
हौसला पास जिसके रहता है
उसके नज़दीक डर नहीं आता
आप जैसा हमें किसी का भी
चाक करना जिगर नहीं आता
मौत सच है सभी के जीवन का
कोई हो कर अमर नहीं आता
इश्क़ की राह क्यों चुनी हीरा
दर्द सहना अगर नहीं आता