ग़ज़ल
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हीरालाल यादव हीरा
नज़र में सबकी है दुश्वार दुनिया
सभी को फिर भी है स्वीकार दुनिया
नचाती उँगलियों पे है तू सबको
तेरे आगे हैं सब लाचार दुनिया
बताते हो इसे जितनी बुरी तुम
नहीं उतनी बुरी सरकार दुनिया
उठाती जा रही है नफ़रतों की
नई हर रोज़ इक दीवार दुनिया
मेरी आँखों ने जो भी ख़्वाब देखे
कहाँ करती है वो साकार दुनिया
ठिकाने होश आ जाते हैं सबके
पड़े है वक़्त की जब मार दुनिया
किसी भी हाल में बनती नहीं है
किसी के ग़म में हिस्सेदार दुनिया
सबब क्या है कि जुड़ता ही नहीं है
तेरे दिल से किसी का तार दुनिया
दिखाती ख़्वाब हीरा ज़िन्दगी के
सज़ा कर मौत का बाज़ार दुनिया