गजल
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हीरालाल यादव” हीरा”
हो चुका है सुकूँ लापता क्या करें
ज़िन्दगी की है बिगड़ी दशा क्या करें
तुझ में है ही नहीं गर वफ़ा क्या करें
ज़िन्दगी तुझसे शिकवा-गिला क्या करें
काम अपना भी आता नहीं आजकल
ग़ैर से फिर कोई आसरा क्या करें
ये समझ से हमारी परे हो गया
ज़िन्दगी के दुखों की दवा क्या करें
आसमाँ छूना तो चाहते हैं मगर
साथ देता नहीं हौसला क्या करें
आदमी, आदमी का है दुश्मन जहाँ
प्रेम की हम वहाँ कामना क्या करें
देखना जो किसी को गवारा नहीं
ऐसी सूरत का हीरा भला क्या करें