अल्लाह ये इन्सान सुधर क्यों नहीं जाता
Top Banner
जिस सिम्त है नुशरत ये उधर क्यों नहीं जाता
अल्लाह ये इन्सान सुधर क्यों नहीं जाता
ऐ दोस्त तु सचमुच में अगर ख़ार नहीं है
तो राहे मुहब्बत में बिखर क्यों नहीं जाता
मुश्किल है अगर तेरे लिए वादा निभाना
वादे से मेरे दोस्त मुकर क्यों नहीं जाता
सच बोल के ही दोस्त मुसीबत में पड़ा हूँ
सच बोलने का फिर भी हुनर क्यों नहीं जाता
आराम की क्या इस को नहीं यार ज़रूरत
दो पल के लिए वक़्त ठहर क्यों नहीं जाता
क्या हद भी मुकर्रर है कोई इश्क़ में प्यारे
तू हद से मुहब्बत में गुज़र क्यों नहीं जाता
क्यों “ताज” नवर्दी का तुझे शौक़ बहुत है
फिरता है शबो रोज़ तु घर क्यों नहीं जाता