Friday, March 14, 2025
कविता

सुविधाओं के शीश महल को जो छोड़ेगा होगा राम

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श्री अशोक मिश्रा

कल जिसको सिंहासन मिलता पड़ा उसे जंगल जाना
राजमुकुट सर आते-आते मिला उसे वल्कल बाना
आने वाली विपदाओं का मुंह मोड़ेगा होगा राम
सुविधाओं के शीश महल को जो छोड़ेगा होगा राम

वन के फूल-शूल को जिसने हंस कर अंगीकार किया
कोल-भील को गले लगाकर कंद-मूल स्वीकार किया
भेदभाव की दीवारों को जो तोड़ेगा होगा राम
सुविधाओं के शीश महल को जो छोड़ेगा होगा राम

डरवातीं हों सूपनखाएं या डरवातें खर-दूषण
आतंकित डरती है धरती भयवश उन्हें कहे भूषण
इनके भारी पाप घड़ों को जो फोड़ेगा होगा राम
सुविधाओं के शीश महल को जो छोड़ेगा होगा राम

हर युग में आते रहते हैं जगजीवन का दुख हरने
स्थापित करने मर्यादा मानव को निर्भय करने
टूटे मन के तार तार को जो जोड़ेगा होगा राम

सुविधाओं के शीश महल को जो छोड़ेगा होगा राम

 

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