Wednesday, October 23, 2024
कविता

कलम नहीं जयघोष करे क्यों पावन पुज्य फ़क़ीरों की

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जय जय ऐसे वीरों की
आज़ादी की खातिर गहनें पहनें जो जंजीरों की

कदम कदम पर कहर किए जो
हंस हंस कर हर जहर पिए जो
काल कोठरी में ही अपनी
सारी आयु बीता दिए जो
नहीं जरा भी अपनी, चिन्ता सिर्फ़ पराए पीरों की

क्रांति फूंक कर के कण कण में
उतर गए जो रण भीषण में
पलक खुले तो झलक पड़े ध्वज
दोनों नैनों के दर्पण में
अद्भुत, अटल,अथाह, शौर्य भी कायल जिन रणधीरों की

अतुलित साहस, अडिग इरादे
अगणित शीशों की तादादें
दफ़न कफ़न बिन हुईं तो तत्पर
हुईं आजादी की बुनियादें
इनके अस्थि-राख के आगे क्या तुलना जागीरों की

प्रबल प्रतापी,कर्म यशस्वी
वेगवान,भुजबली, तेजस्वी
महासमर को दिए जवानी
मातृभूमि के परम तपस्वी
जिनके सर पर चलने से
हिम्मत छूटी शमशीरों की

सरहद पर सर बोने वाले
नींद मौत की सोने वाले
भारत माता के दामन का
दाग़ लहू से धोने वाले
कलम नहीं जयघोष करे क्यों
पावन पुज्य फ़क़ीरों की

रवि यादव