लद्दाख को मिला पहला राजनीतिक उपराज्यपाल: कविंदर गुप्ता की नियुक्ति से केंद्र की रणनीति में संकेतात्मक परिवर्तन – BBC India News 24
05/12/25
Breaking News

लद्दाख को मिला पहला राजनीतिक उपराज्यपाल: कविंदर गुप्ता की नियुक्ति से केंद्र की रणनीति में संकेतात्मक परिवर्तन

स्थान: श्रीनगर/नई दिल्ली | विशेष संवाददाता
दिनांक: 15 जुलाई 2025

राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता कविंदर गुप्ता को लद्दाख के नए उपराज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह लद्दाख के राजनीतिक भविष्य और केंद्र-राज्य संबंधों की दिशा में एक निर्णायक परिवर्तन का संकेत भी देती है।

गैर-राजनीतिक से राजनीतिक नेतृत्व की ओर परिवर्तन

अब तक लद्दाख में उपराज्यपाल का पद मुख्यतः गैर-राजनीतिक और नौकरशाही पृष्ठभूमि से संबंधित व्यक्तियों को ही सौंपा जाता रहा है। वर्ष 2019 में केंद्रशासित प्रदेश घोषित होने के पश्चात इस पद पर पहले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी आर.के. माथुर तथा तत्पश्चात सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर (डॉ.) बी.डी. मिश्रा को नियुक्त किया गया था। परंतु इस बार केंद्र सरकार ने इस परंपरा से हटकर एक सक्रिय राजनेता को यह उत्तरदायित्व सौंपा है — जो कि प्रशासनिक दृष्टिकोण के साथ-साथ राजनीतिक हस्तक्षेप और निगरानी की नई प्रवृत्ति को रेखांकित करता है।

कविंदर गुप्ता: एक संक्षिप्त राजनीतिक प्रोफ़ाइल

कविंदर गुप्ता, जो भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ एवं जमीनी नेता माने जाते हैं, 2005 से 2010 तक जम्मू नगर निगम के महापौर रहे। इसके पश्चात उन्होंने 2014 में गांधीनगर विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता रमन भल्ला को पराजित कर विधानसभा में प्रवेश किया। तत्पश्चात उन्हें जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष का पद सौंपा गया, और 2018 में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में चल रही पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।

उनका यह राजनीतिक सफर, विशेषकर जम्मू क्षेत्र में भाजपा के आधार को सुदृढ़ करने में निभाई गई भूमिका, उन्हें लद्दाख जैसे संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र में एक सुसंगत राजनीतिक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में प्रस्तुत करता है।

राजनीतिक संदर्भ एवं केंद्र की नीति में बदलाव

लद्दाख, जो भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है और चीन के साथ लगती सीमा पर लगातार सामरिक तनाव का केंद्र रहा है, वहाँ अबतक प्रशासनिक स्थिरता और विकास के लिए नौकरशाही नेतृत्व को वरीयता दी जाती रही है। किन्तु हाल के वर्षों में केंद्र सरकार को स्थानीय राजनीतिक दलों एवं सामाजिक संगठनों से राजनैतिक प्रतिनिधित्व और 6वें अनुसूची के अंतर्गत स्वायत्तता की माँग का सामना करना पड़ा है।

इस परिप्रेक्ष्य में कविंदर गुप्ता की नियुक्ति एक रणनीतिक सन्देश के रूप में देखी जा रही है — कि केंद्र अब लद्दाख में राजनीतिक भागीदारी को औपचारिक रूप से संरक्षित करना चाहता है। इससे एक ओर क्षेत्रीय आकांक्षाओं को संतुलित किया जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक समन्वय के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में गति लाई जा सकेगी।

विधिक और संवैधानिक पहलू

भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन हेतु राष्ट्रपति द्वारा उपराज्यपाल की नियुक्ति की जाती है। उपराज्यपाल, एक सीमित कार्यपालिका प्रमुख होते हुए भी, केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में स्थानीय प्रशासन पर व्यापक नियंत्रण रखते हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित किया जाता है कि केंद्र की नीति एवं प्राथमिकताएँ प्रदेशीय शासन में सुसंगत रूप से परिलक्षित हों।

कविंदर गुप्ता की नियुक्ति इसी विधिक ढांचे के अंतर्गत की गई है, परंतु इसका व्यापक राजनीतिक प्रभाव निहित है, क्योंकि अब यह कार्यालय किसी अव्यवस्थित नौकरशाह या प्रशासनिक प्रबंधक के स्थान पर एक सक्रिय राजनेता के हाथों में है।

भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

लद्दाख में अभी भी स्वदेशी अधिकारों, रोजगार, पारिस्थितिक संरक्षण और परिसीमन जैसे मुद्दों पर जनता का आक्रोश बना हुआ है। केंद्र से लगातार संवाद की माँग और पृथक पहचान की तलाश — ये सभी ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनसे अब गुप्ता को राजनीतिक समझ, कूटनीति और प्रशासनिक दक्षता के समुचित समन्वय से निपटना होगा।

एक परिवर्तनकारी क्षण

कविंदर गुप्ता की लद्दाख उपराज्यपाल के रूप में नियुक्ति कोई साधारण प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण का परिवर्तन है — जिसमें तकनीकी नेतृत्व से हटकर राजनीतिक साझेदारी और नियंत्रित लोकतंत्र की ओर केंद्र का झुकाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

यह देखना शेष है कि क्या गुप्ता लद्दाख की जटिल सामाजिक संरचना, भूराजनीतिक संवेदनशीलता और स्थानीय आकांक्षाओं के बीच संतुलन स्थापित कर पाएंगे, अथवा यह नियुक्ति भी मात्र एक राजनीतिक प्रयोग बनकर रह जाएगी।